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Main Zindgi Se sikhta Raha

दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा
मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !!
छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की
मै सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा !!
दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता
मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!
बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से
रंग मेरा भी निखरा पर, मै मेहँदी की तरह पीसता रहा !!
जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर...
मै समुद्र के राज गहराई के सीखता रहा !

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